सालगिरह
सोचता हूँ तेरे सालगिरह पर क्या नायाब लिक्खूँ तुझको कली कहूँ या फ़िर खिलता ग़ुलाब लिक्खूँ इश्क़ की सुनहरी राह और तुझसा हसीन साथी तुझे मल्लिका-ए-हुस्न या महकता शबाब लिक्खूँ एक सफर है ये जिंदगी बस आज की बात नहीं तुझ जैसे हमसफ़र के लिए रोज़ नये ख़्वाब लिक्खूँ ! #आशुतोष