तनहा
हम वो परवाने नहीं जो ग़म की लौ में हैं जलते,
यादें ही हमदम हैं अपनी हम नहीं तनहा हैं चलते!
लाखों कर लो कोशिशे या जाँ भी दे दो तुम चाहे,
आँखों में जो इश्क़ ना हो तो नहीं सपने हैं पलते!
खाये धोख़े हम ने इतने ज़िन्दगी की राहों में,
पाने को साथी पुराने अब नहीं अरमाँ मचलते!
दूर कितने भी हैं दोनों पर मिले हैं दिल जो अपने,
ये मीलों के फ़ासले भी अब नहीं हम को हैं खलते!
पासा हो चौकड़ का या फ़िर हो मैदान-ए-जंग ही,
आगे जाने की ज़िद में हम किसी को नहीं हैं छलते!
रहमत की होती बारिशें पर क़िस्मत की दामन फ़टी,
ग़र मिल जाता जो रफ़ूगर तो नहीं दर बदर भटकते!
©आशुतोष कुमार
यादें ही हमदम हैं अपनी हम नहीं तनहा हैं चलते!
लाखों कर लो कोशिशे या जाँ भी दे दो तुम चाहे,
आँखों में जो इश्क़ ना हो तो नहीं सपने हैं पलते!
खाये धोख़े हम ने इतने ज़िन्दगी की राहों में,
पाने को साथी पुराने अब नहीं अरमाँ मचलते!
दूर कितने भी हैं दोनों पर मिले हैं दिल जो अपने,
ये मीलों के फ़ासले भी अब नहीं हम को हैं खलते!
पासा हो चौकड़ का या फ़िर हो मैदान-ए-जंग ही,
आगे जाने की ज़िद में हम किसी को नहीं हैं छलते!
सूरज को ढँक लें कितनी भी दुःखों की ये बदलियाँ,
हौंसलों से चढ़ने वाले दिन कभी नहीं हैं ढलते!
हौंसलों से चढ़ने वाले दिन कभी नहीं हैं ढलते!
रहमत की होती बारिशें पर क़िस्मत की दामन फ़टी,
ग़र मिल जाता जो रफ़ूगर तो नहीं दर बदर भटकते!
©आशुतोष कुमार
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