हम चलते रहे
जिन्हे छलना था, वो छलते रहे !
हमें चलना था, हम चलते रहे !!
बस अपनी तन्हाई काटनी थी उन्हें,
और हमारी आँखों में, सपने पलते रहे !
अकेले में जब भी मिला मुझे खुदा बताया,
पर भरी महफ़िल में, हम उन्हें खलते रहे !
जब तलक हम मुफलिसी में थे, वो हमदर्द थे,
कुछ बुलंदी को जो छुआ हमने, तो बैठे जलते रहे !
कुछ सोची समझी चाल थी, कुछ ग़लतफ़हमियाँ,
वो वक़्त के हिसाब से, अपनी नीयत बदलते रहे !
जिस चमन में गये, चुन ली सारी कलियाँ,
बेचारे भवरों के दिल में, अरमान मचलते रहे !
कुछ रहनुमा भी मिले दुनिया के सफर में,
रूहानी हाथ बढ़ते रहे, करम फलते रहे !
जिन्हे छलना था, वो छलते रहे !
हमें चलना था, हम चलते रहे !!
-आशुतोष
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