जिन्हे छलना था, वो छलते रहे ! हमें चलना था, हम चलते रहे !! बस अपनी तन्हाई काटनी थी उन्हें, और हमारी आँखों में, सपने पलते रहे ! अकेले में जब भी मिला मुझे खुदा बताया, पर भरी महफ़िल में, हम उन्हें खलते रहे ! जब तलक हम मुफलिसी में थे, वो हमदर्द थे, कुछ बुलंदी को जो छुआ हमने, तो बैठे जलते रहे ! कुछ सोची समझी चाल थी, कुछ ग़लतफ़हमियाँ, वो वक़्त के हिसाब से, अपनी नीयत बदलते रहे ! जिस चमन में गये, चुन ली सारी कलियाँ, बेचारे भवरों के दिल में, अरमान मचलते रहे ! कुछ रहनुमा भी मिले दुनिया के सफर में, रूहानी हाथ बढ़ते रहे, करम फलते रहे ! जिन्हे छलना था, वो छलते रहे ! हमें चलना था, हम चलते रहे !! -आशुतोष
शिव मेरा शमशान में खेले भस्म रमा के होली, क्षीर सागर में लेटे विष्णु, नाचे देवो की टोली ! कृष्ण ने भी गोपियों संग ब्रिज में है रंग घोली, हनुमान ने राम जी की भक्ति में खुद को भिंगोली ! इन्द्र ने भी स्वर्ग में भर दी अफ्सराओ की झोली, ब्रह्मा जी ने आज ज्ञान की नयी शाखा है खोली ! आओ दिल से मिलायें दिल, रंगों से मिलायें रंग, रूठे सब अब जायें मिल, अंतर में छाये उमंग ! ख़ुशियों के गीत गायें मिलजुल कर हमजोली, बीती ताहि बिसारी दे, जो हो ली सो हो ली ! - आशुतोष कुमार
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